हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारे देश में भाई-भतीजावाद (Nepotism) एक बहुत बड़ी समस्या है। राजनीती में परिवारवाद, भाई भतीजावाद का बोलबाला आपको स्पष्ट दीखता है- गांधी, लालू ,करूणानिधि , मुलायम,देवीलाल -चौटाला, ममता -अभिषेक, इत्यादि। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इसका उपाय क्या है?
तो आपको बात दें की इसका उपाय भी राजनीतिक दलों के पास ही है। पार्टियां जनता का प्रतिनिधित्व करती हैं, तो परिवारवाद, हाई कमांड कल्चर जैसे विकारों को पार्टियों से खत्म करने का दायित्व भी उन्हीं का बनता है। लेकिन क्या यह राजनीतिक दल अपने आप को सुधारेंगे? क्या बिल्ली अपने गले में घंटी खुद बाँधेगी? अगर आज की स्थिति को देखा जाए तो लगता नहीं कि ऐसा कुछ होगा। लेकिन क्या जनता इन राजनीतिक दलों को, पार्टियों में व्याप्त विकारों को खत्म करने व सुधार लाने के लिए विवश कर सकती है?
आज भारतीय लोकतंत्र पर राजनीति दल इस कदर हावी हो चुके हैं कि वह एक गैंग की तरह नजर आने लगे हैं। आप सभी ने राजीव दीक्षित का एक वीडियो देखा होगा जिसमें उन्होंने कहा है कि किसी भी एक नगर में या क्षेत्र में हमें अपना जन प्रतिनिधि चाहिए, तो हम (जनता ) उसका चुनाव कर उसे संसद में भेज सकते हैं, इस के लिए यह दल या पार्टियां क्यों चाहिए?
तो उनकी इस बात से यह समझ आता है कि वास्तव में लोकतंत्र में राजनीतिक दल न भी हो, तो भी लोकतंत्र को चलाया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त अगर हम इस परिकल्पना में न भी जाएं की राजनीतिक दलों को पूर्ण रूप से खत्म कर दिया जाए, तब भी अगर राजनीतिक दल इस तरह का सुधार लेकर आएं कि उसमें कोई भी सदस्य उतना ही हक रखता हो की वह पद, जिम्मेदारियों के साथ पार्टी में आगे बढ़ सके। यानी कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की स्थापना हो।
पश्चिम जगत के देशों में इस प्रकार के रिफॉर्म्स को लाया जा चुका है। उन देशों में ऐसी प्रणाली विकसित की गई है, जिसकी वजह से राजनीतिक दल किसी एक या कुछ लोगों की बपौती नहीं बनती है। इसलिए परिवारवाद-भाई भतीजावाद जैसी समस्या वहाँ देखने को नहीं मिलती है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह करना असंभव लगता है, लेकिन अगर हम प्रधानमंत्री की बात पर जाएं तो इसके कुछ उपाय यह लगते हैं।
- भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) स्वतः प्रधानमंत्री की भावनाओं का ध्यान रखते हुए, आंतरिक लोकतंत्र (inner party democracy ) के लिए कानून बनाए। या ऐसा सिस्टम बनाए की अगर राजनीतिक दल आंतरिक लोकतंत्र से नहीं लेकर आती हैं तो, पार्टी की मान्यता रद्द कर दी जाएगी।
- संसद के माध्यम से भी इस पहलू पर विचार किया जा सकता है और कानून बनाया जा सकता है।
- लोक उम्मीदवार (Lok Ummedwar): जनता भी राजनीतिक दलों की गुंडागर्दी, धाकड़बाजी, माफियाखोरी से परेशान है। और इसको खत्म करने के लिए, जनता भी एक व्यवस्था के तहत लोक समितियाँ बनाकर या मतदाता परिषद के तहत, जनता बड़े स्तर पर, अपने क्षेत्र से अपना उम्मीदवार या प्रतिनिधि खड़ा कर सकती है। उन जन उम्मीदवारों को भी चुनावों में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के मुकाबले चुनाव लड़वा सकती है। आप इस विचार को लोक उम्मीदवार (Lok Ummedwar) भी कह सकते हैं। इसी के माध्यम से राजनीतिक दलों को भी विवश होना पड़ेगा की वह अपने में सुधार लेकर आएं।